गोपालपुर(मुखर्जी नगर) के रोड पर झोंपड़पट्टी में रहने वाले बच्चो के साथ कुछ पल :-एक कहानी
दिल्ली का मुखर्जी नगर IAS कॉलोनी के नाम से प्रसिद्ध है और इसी के इर्द-गिर्द बहुत सारी जगह हैं जहां पर स्टूडेंट आकर तैयारी करते हैं जिसमें से एक सबसे सस्ती जगह कहीं जा सकती है वह है गोपालपुर , यह एक गांव के रूप में जाना जाता है परंतु यहां पर सारी सुविधाएं उपलब्ध है जहाँ रहकर एक स्टूडेंट तैयारी कर सके |
मुखर्जी नगर से गोपालपुर की दूरी लगभग डेढ़ से 2 किलोमीटर के आसपास होगी लेकिन दोनों ही जगह पर आप जाएंगे तो काफी असमानताएं नजर आएंगे एक तरफ स्वच्छता मिलेगी तो दूसरी तरफ मलिन बस्तियों जैसे हालात |
मुखर्जी नगर के अंदर काफी पैसे वाले लोग रहते हैं और गोपालपुर में पहले से मलिन बस्तियां बसी हुई थी लेकिन अब वहाँ भी धीरे-धीरे बिल्डिंग नजर आने लगी है लेकिन स्वच्छता का अभाव है गलियों में हवा रुकी हुई है जिससे बदबू आती है जैसे जैसे गोपालपुर की तरफ जाते हैं स्वच्छता का आभाव बढ़ता जाता है |
कल मैं कुछ ऐसे बच्चों को ढूंढ रहा था जिनको कुछ दे सकूं जैसे कुछ खाने की चीज, तो मेरे दिमाग में आया कि गोपालपुर का जो रोड है वहां पर कुछ झोपड़पट्टी हैं और वहां काफी बच्चे मिल जाएंगे जिनको मैं कुछ खाने के लिए दे दूंगा, तो मैं निकल गया अपने दो दोस्तों के साथ और मैंने वहां से लगभग 30 बिस्कुट के पैकेट ख़रीदे
वहीं थोड़ी ही दूर कुछ बच्चे खेल रहे थे लेकिन काफी कम मात्रा में थे तो मैंने सोचा यही से शुरुआत कर देते हैं और मैं बिस्कुट बांटने लग गया देखते ही देखते वहां पर बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई और लगभग 30 बिस्कुट पूरे बंट चुके थे लेकिन फिर भी काफी बच्चे रह गए थे तो मैंने अपने दोस्तों से कहा आप जाकर और बिस्कुट ले आइए वह बिस्कुट लेने चले गए
मैं वहीं पर खड़ा बच्चों से बातें करता रहा जैसे क्या आप पढ़ते हैं ? तो ज्यादातर लोग पढ़ते ही थे पास के स्कूल में, तभी उधर से दोस्त बिस्कुट लेकर आ चुके थे 30 पैकेट, मैंने बांटना शुरू किया लेकिन हुआ क्या- जो बच्चे पहले ले चुके थे मैं पहचान नहीं कर पा रहा था तो मैंने वहीं के एक बच्चे से कहा कि आपको ध्यान रखना है कौन पहले ले गया था
तो उस बच्चे ने कहा कि ठीक है मैं ध्यान रखुंगा तो उसने एक लाइन लगवा दी और बच्चे व्यवस्थित नजर आने लगे, अब लगा अच्छे से व्यवस्था हो गई है अब आसानी से बाँटा जा सकता है लेकिन जैसे ही मैंने बांटने की कोशिश की बच्चे एकदम से झपटने लग गए तो ज्यादातर बिस्कुट मैंने धीरे धीरे बांट दिए
लेकिन हुआ क्या जिस लड़के को मैंने कहा था ध्यान रखना, वह अपने लोगों को बताने लग गया कि यह रह गए हैं यह बच्चा रह गया है और कुछ बच्चे जो कि शांतिपूर्वक पीछे खड़े थे उनका नंबर नहीं आ पाया मैं उनको बिस्कुट नहीं दे पाया
यहां पर सारी चीजें मौजूद जैसे लगभग 60 पैकेट बिस्कुट थे लेकिन बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा थी और बच्चों के अंदर धेर्य नहीं था वह सोच रहे थे कि जल्द से जल्द समाप्त हो जाएंगे तो हमें छीन लेना चाहिए इसी प्रकार कुछ महिलाएं भी आ गई अपने बच्चों को लेकर और वह अपने बच्चे के लिए बिस्कुट के पैकेट ले गई
तो इस प्रकार से चीजें हो रही थी वहां पर, सारे बिस्कुट समाप्त हो गए और कुछ बच्चे रह गए
जब मैं घर आया तो मुझे लगा कि यही सरकार के साथ होता है सरकार को पूछो तो काम करती है लेकिन नीचे तक नहीं पहुँच पाता है और इसी बीच में कुछ बिचौलिए आ जाते हैं जिनको सरकार सत्ता दे देती है और वह अपने लोगों को बस्तुएं या योजनाओं का लाभ दे देते हैं और कुछ लोग बड़े लोगों को साथ लेकर अपना काम निकलवा लेते हैं
तो यही स्थिति मेरे साथ कल घटित हुई जिन बच्चों को बिस्कुट मिल गए वो काफी संतुष्ट नजर आ रहे थे लेकिन जिन को प्राप्त नहीं हो पाए वह थोड़े से निराश नजर आ रहे थे और फिर मैं वहां से आगे बढ़ गया मुखर्जी नगर की तरफ
कभी फिर मौका मिला तो इन चीजों पर ध्यान रखूंगा और कुछ ऐसा करने की कोशिश करूंगा जिससे अब जो बांटने में परेशानी आई थी वह आगे न आए
गोल्डेज स्वर्गीय