UPSC DAILY CURRENT 03-05-2018
स्रोत : द हिंदू एवं पी.आई.बी.
केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप के कारण
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन। (खंड-1 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।) |
संदर्भ
लगभग दो हफ्ते पहले अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने भारत के केंद्रीय बैंक द्वारा लगातार किये जा रहे विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप का हवाला देते हुए भारत को अपनी ‘निगरानी सूची’ में जोड़ दिया है, जिसके अंतर्गत अमेरिका द्वारा भारतीय आर्थिक नीतियों और विदेशी मुद्रा विनिमय पर नज़र रखी जाएगी। इससे भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा पिछले कुछ वर्षों से किये जा रहे विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप की आलोचना की जा रही है। हालाँकि, इसे आरबीआई की बफर रिज़र्व तैयार करने की नीति का भाग माना जा रहा है।
प्रमुख बिंदु
- हाल के दिनों में विदेशी निवेशकों ने उभरते बाज़ारों से धन निकालना शुरू कर दिया है। इससे भारत पर बड़ा प्रभाव पड़ा है और भारतीय रुपया 14 माह के निचले स्तर के करीब है।
- ऐसे समय में जब भारत के चालू खाता घाटे में वृद्धि के साथ ही मुद्रा बाज़ार में कमजोरी बने रहने की संभावना है, तब केंद्रीय बैंक द्वारा तैयार किया जा रहा यह बफर रिजर्व रुपए में खुली गिरावट को रोकने का काम करेगा।
- वर्ष 2013 में भी ऐसा ही देखने को मिला था, जब उभरते बाज़ारों से बड़ी मात्रा में धन निकाला गया था और भारत इससे बहुत प्रभावित हुआ था।
- भारत उस समय इंडोनेशिया, तुर्की, दक्षिण अफ्रीका और ब्राज़ील के साथ उन पाँच उभरती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल था, जो इस धन प्रवाह से सर्वाधिक प्रभावित हुई थीं।
- उस छोटे संकट से यह सीख मिली कि हमें अपने आयात कवर को बढ़ाना होगा ताकि भविष्य में ऐसे संकटों से बचा जा सके। परिणामस्वरूप, भारत के बाह्य भेद्यता संकेतक (external vulnerability indicators) 2013 की तुलना में आज काफी मज़बूत दिखते हैं।
- भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब $424 बिलियन है, जो 2013 के 6 महीने की तुलना में लगभग 10 महीने का आयात कवर प्रदान करता है।
- संकट के समय मुद्रा हस्तक्षेप की आवश्यकता विदेशी मुद्रा भंडार के निर्माण के महत्त्व को रेखांकित करती है। 1997 के एशियाई संकट के चलते ये सबक उभरते बाज़ारों द्वारा सीखे गए थे।
- उस समय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) द्वारा प्रभावित देशों को इस संकट से बाहर निकालने के एवज़ में कड़ी शर्तें आरोपित की गई थीं, जिससे उन देशों को भविष्य में इस तरह के अपमान से बचने के उपाय तैयार करने की आवश्यकता महसूस हुई।
- चीन जैसे उभरते बाज़ारों ने चालू खाता अधिशेष द्वारा विदेशी मुद्रा भंडार जमा किये हैं, जबकि भारत में यह भंडार पूंजी आगतों के कारण जमा हुआ है।
- भारत का कुल बाह्य ऋण आरबीआई के विदेशी मुद्रा भंडार से अधिक है, जबकि चीन के मामले में, यह उसके केंद्रीय बैंक द्वारा रखे गए भंडार के आधे से भी कम है। इस प्रकार, इस पर चीन के साथ भी कोई तुलना नहीं हो सकती है।
- यह भी ध्यान देने योग्य है कि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के कई केंद्रीय बैंकों की गैर-परंपरागत मौद्रिक नीतियाँ मुद्रा बाज़ारों को विकृत करती हैं।
- अमेरिकी फेडरल बैंक और यूरोपीय सेंट्रल बैंक द्वारा चलाए गए बड़े पैमाने के बॉण्ड-खरीद कार्यक्रमों के कारण भी मुद्रा की कीमतों पर प्रभाव पड़ता है।
- ध्यातव्य है कि 2011 और 2015 के बीच स्विस नेशनल बैंक (एसएनबी) ने स्विस फ्रैंक को निर्धारित अधिकतम सीमा तक रोकने हेतु सार्वजनिक रूप से मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करने की घोषणा की थी।
- अतः आरबीआई द्वारा मुद्रा बाज़ार में किये जा रहे रक्षोपाय उचित प्रतीत होते हैं एवं जो उभरते बाज़ार पूंजी आगतों के समय रिज़र्व तैयार करते हैं, उन्हें करेंसी मैनीपुलेटर (currency manipulator) नहीं माना जाना चाहिये।
- वे केवल इतिहास से सीखने की कोशिश कर रहे हैं और अपने भविष्य की रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं।
कॉर्पोरेट और विरासत
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-1: भारतीय विरासत और संस्कृति, विश्व का इतिहास एवं भूगोल और समाज (खंड-1 : भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे।) |
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन (खंड-1 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।) |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कॉर्पोरेट समूह डालमिया ने भारत में ‘एडॉप्ट ए हेरिटेज’ (Adopt a Heritage) योजना के तहत दिल्ली स्थित लाल किला तथा आंध्र प्रदेश के कदपा ज़िला स्थित गंदिकोटा किला को गोद लिया है।
‘एडॉप्ट ए हेरिटेज’ (Adopt a Heritage)
पर्यटन मंत्रालय द्वारा विश्व पर्यटन दिवस के मौके पर 27 सितंबर, 2017 को ‘एडॉप्ट ए हेरिटेज’ की शुरुआत की गई थी। यह भारतीय पर्यटन मंत्रालय, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभाग तथा राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों के मध्य पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु शुरू की गई एक सहयोगी योजना है। इसमें हमारे समृद्ध और विविध विरासत स्मारकों को पर्यटन मैत्री बनाने की क्षमता है। यह योजना भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) के प्रमुख स्मारकों में शुरू की गई है, जिसके तहत अभी तक देश के 95 स्मारकों को शामिल किया जा चुका है। |
प्रमुख बिंदु
- इस योजना के तहत अगले पाँच साल तक डालमिया, भारत में इन विरासत स्थलों में बुनियादी एवं आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध कराने के साथ-साथ इनके संचालन तथा रख-रखाव की ज़िम्मेदारी भी निभाएगा।
- इस समझौते के तहत डालमिया भारत, छह महीने के भीतर लाल किला में ज़रूरी सुविधाएँ जैसे- एप बेस्ड गाइड, डिजिटल स्क्रीनिंग, फ्री वाईफाई, डिजिटल इंटरैक्टिव कियोस्क, पानी की सुविधा, टेक्टाइल मैप, रास्तों पर लाइटिंग, बैटरी से चलने वाले वाहन, चार्जिंग स्टेशन, सर्विलांस सिस्टम आदि उपलब्ध कराएगा।
- कंपनी सीएसआर इनिशिएटिव यानी कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने के माध्यम से इनका रख-रखाव करने और पर्यटकों के लिये शौचालय, पीने का पानी, रोशनी की व्यवस्था करने और क्लॉकरूम आदि बनवाने के लिये लगभग 5 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष खर्च करेगी।
- हालाँकि एडॉप्ट ए हेरिटेज की वेबसाइट पर अनुपालन दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि यदि कंपनी भारत के पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) दिशानिर्देशों का पालन नहीं करती है तो पाँच वर्ष का अनुबंध समाप्त किया जा सकता है।
भारत के पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI)
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- इसके साथ ही यदि गोद लेने के बाद जब तक स्मारक की वैधानिक स्थिति नहीं बदलेगी तब तक सरकार की अनुमति के बिना जनता से कोई पैसा एकत्र नहीं किया जाएगा।
दिल्ली का लाल किला
- दिल्ली के लाल किले को बसाने का श्रेय शाहजहाँ को है।
- शाहजहाँ ने 1638 ई. में यमुना नदी के दाहिने तट पर शाहजहाँनाबाद नामक नगर की नींव डाली।
- इस नगर में 14 फाटक और चाँदनी चौक बाज़ार बनाया गया एवं बाज़ार के बीच से नहर निकाली गई, जिसे ‘नहर-ए-विहिस्त’ कहा गया।
- इसी शाहजहाँनाबाद में अष्टभुजाकार लाल किले का निर्माण करवाया गया।
- 648 ई. में लाल बलुआ पत्थर निर्मित इस किले में रंगमहल, हीरामहल, नौबतखाना, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास आदि महत्त्वपूर्ण ईमारतें हैं।
- लाल किले में बनी दीवान-ए-आम इमारत के स्तंभों पर नौ द्वारों वाली लहरदार मेहराबों का एक कक्ष है, जिसका एक हिस्सा बंगाल शैली की छत से बना है।
- इसी छत के नीचे तख़्त-ए-ताउस से लगे हुए रंगमहल का निर्माण शाही परिवार के लोगों के लिये किया गया था।
- लाल किले में औरंगज़ेब ने मोती मस्ज़िद का निर्माण करवाया था, जिसकी बायीं तरफ हयात बख्त बाग बनाया गया है।
स्रोत: द हिंदू
यूएसटीआर ने जारी की ‘2018 स्पेशल 301 रिपोर्ट’
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध। (खंड-13 : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।) (खंड-19 : भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय।) |
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन। (खंड-13 : सूचना प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टैक्नोलॉजी, बायो-टैक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित विषयों के संबंध में जागरूकता।) |
चर्चा में क्यों ?
यूएसटीआर (United States Trade Representative) ने अपनी ‘2018 स्पेशल 301 रिपोर्ट’ जारी कर दी है। इसमें भारत को पुनः ‘प्राथमिकता निगरानी सूची’ में रखा गया है। अंतर्राष्ट्रीय मानवतावादी संगठन ‘डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ ने इस कदम को ‘एंटी पब्लिक हेल्थ’ करार दिया है।
प्रमुख बिंदु
- इस रिपोर्ट के अंतर्गत, अमेरिका अपने व्यापारिक भागीदारों का बौद्धिक संपदा की रक्षा और प्रवर्तन संबंधी ट्रैक रिकॉर्ड पर आकलन करता है।
- भारत को हमेशा फार्मास्युटिकल्स पेंटेंट प्रदान करने और दवाओं को सस्ता रखने के लिये नीतिगत निर्णय लेने के बीच संतुलन बनाए रखने संबंधी प्रयासों के कारण आलोचनात्मक नज़रिये से देखा जाता है।
- इस वर्ष की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत ‘प्राथमिकता निगरानी सूची’ में बना हुआ है क्योंकि उसने लंबे समय से उपस्थित और नई चुनौतियों से संबंधित बौद्धिक संपदा फ्रेमवर्क में अपेक्षानुसार सुधार नहीं किया है। इस कारण अमेरिका के बौद्धिक संपदा अधिकार धारकों के हित नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए हैं।
- दिलचस्प बात यह है कि इस सूची में कनाडा, चीन, अर्जेंटीना, कोलंबिया और रूस भी शामिल हैं।
- कनाडा G7 समूह का एकमात्र ऐसा देश है जिसे इस सूची में शामिल किया गया है।
- ‘प्राथमिकता निगरानी सूची’ वर्गीकरण इंगित करता है कि इसमें शामिल देशों में बौद्धिक संपदा संबंधी सुरक्षा, प्रवर्तन और बाज़ार पहुँच की समस्याएँ विद्यमान हैं।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिकी कारोबारियों को भारत में विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यहाँ नवाचार करने वालों के लिये पेटेंट मिलना और उसे कायम रखना चुनौतीपूर्ण कार्य है।
- भारत में विशेषकर फार्मास्यूटिकल्स के क्षेत्र में प्रवर्तन संबंधित समस्या विद्यमान है।
- रिपोर्ट में ‘नई और उभरती चिंताओं’ को भी इंगित किया गया है। इसमें कहा गया है कि भारत का बहुपक्षीय मंचों पर बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित मामलों में पक्ष स्पष्ट नहीं है जो भारत की नवाचार और रचनात्मकता में अभिवृद्धि संबंधी नीतियों पर संशय पैदा करता है।
- रिपोर्ट में भारत को बौद्धिक संपदा सुरक्षा और प्रवर्तन के संबंध में सबसे चुनौतीपूर्ण बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक मानते हुए कहा गया है कि भारत को लंबे समय से उपस्थित पेटेंट के मामलों का निस्तारण करना होगा, क्योंकि इनसे नवाचार उद्योग प्रभावित हो रहा है।
- रिपोर्ट में कहा गया है बाज़ार पहुँच संबंधी बाधाओं की पहचान और उनका निवारण बेहद आवश्यक है, क्योंकि इनके कारण अमेरिकियों के हित प्रभावित हो रहे हैं।
- जालीपन के मुद्दे पर इस रिपोर्ट का कहना है कि वित्त वर्ष 2017 में अमेरिकी सीमा पर जब्त किये गए सभी नकली फार्मास्यूटिकल्स के मूल्य का नब्बे प्रतिशत चार अर्थव्यवस्थाओं (चीन, डोमिनिकन गणराज्य, हॉन्गकॉन्ग और भारत) के माध्यम से भेजा गया था।
- रिपोर्ट के अनुसार, चीन और भारत वैश्विक स्तर पर वितरित नकली दवाओं के प्रमुख स्रोत हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारतीय बाज़ार में बेची जाने वाली 20 प्रतिशत दवाएँ नकली हैं, जो मरीजों के स्वास्थ्य के लिये गंभीर खतरा पैदा कर सकती हैं।
- हालाँकि, भारत को सार्वजनिक स्वास्थ्य मोर्चे पर ‘डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ से समर्थन प्राप्त हुआ है।
- इस संगठन के अनुसार, अमेरिका ने इस रिपोर्ट के माध्यम से अनुचित तरीके से भारत जैसे देशों को निशाना बनाया है, क्योंकि यह दवाओं तक हर किसी की पहुँच में सुधार करने हेतु अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों के तहत कानूनी उपायों का उपयोग करके वैश्विक स्तर पर कोलंबिया, मलेशिया और अन्य देशों को सस्ती और गुणवत्तायुक्त जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करता है।
- यह रिपोर्ट अमेरिका द्वारा अपनाई जा रही उसी नीति का हिस्सा है जिसके तहत वह अन्य देशों पर दबाव बनाकर अपनी फार्मास्यूटिकल्स कंपनियों को उन देशों में पेटेंट अधिकार दिलाने का प्रयास कर रहा है, ताकि मरीज़ों तक सस्ती दवाएँ आसानी से न पहुँच पाएँ।
- संगठन का कहना है कि अमेरिका को भारत जैसे देशों, जो कि सस्ती दवाओं की आपूर्ति द्वारा अपने नागरिकों की देखभाल करने की कोशिश कर रहे हैं, को दोषी ठहराने के बजाय उनके साथ मिलकर ज़रूरतमंद लोगों तक दवाओं की आपूर्ति बढ़ाने हेतु प्रयास करना चाहिये।
स्रोत : द हिंदू (बिज़नेस लाइन)