UPSC DAILY CURRENT 05/O5/2018
स्रोत : द हिंदू एवं पी.आई.बी.
गैर-ब्रांडेड जेनेरिक दवाएँ एवं ऑर्फ़न ड्रग्स हो सकती हैं मूल्य नियंत्रण से बाहर
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध। (खंड-13 : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।) |
चर्चा में क्यों ?
केंद्र सरकार नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) के पुनर्गठन के साथ-साथ गैर-ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं एवं ऑर्फ़न ड्रग्स को मूल्य नियंत्रण से मुक्त करने का विचार कर रही है। दुर्लभ रोगों के इलाज के लिये राष्ट्रीय नीति, 2017 (एनपीटीआरडी) में कहा गया था कि ऑर्फ़न ड्रग्स बहुत महँगी होती हैं एवं दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों की संख्या बहुत छोटी है। इसलिये दवा कंपनियों को इनके लिये दवाएँ विकसित करना और बेचना व्यवहार्य नहीं लगता। इसलिये इन दवाओं को ‘ऑर्फ़न ड्रग्स’ कहा जाता है।
प्रमुख बिंदु
- एनपीटीआरडी में कहा गया है कि जो कंपनियाँ दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिये दवाएँ (ड्रग्स) बनाती हैं, वे इन्हें अनुसंधान और विकास की लागत की भरपाई के लिये अत्यधिक कीमत पर बेचती हैं।
- केंद्र सरकार, नीति आयोग द्वारा पेश किये गए प्रस्ताव पर चर्चा कर रही है, जिसमें ऑर्फ़न ड्रग्स, गैर-ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं और अन्य ऐसी दवाएँ, जो सस्ती दवाइयों और स्वास्थ्य उत्पादों हेतु प्रस्तावित स्थायी समिति द्वारा प्रस्तावित की जाएँ, को शामिल करने हेतु ड्रग (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 2013 के पैरा 32 में संशोधन करने की मांग की गई है।
- वर्तमान में ड्रग (मूल्य नियंत्रण) आदेश, 2013 का पैरा 32 एनपीपीए को कुछ निश्चित वर्गों की दवाओं को मूल्य नियंत्रण से मुक्त करने की शक्ति प्रदान करता है।
- केंद्र सरकार ‘सस्ती दवाइयों और स्वास्थ्य उत्पादों हेतु स्थायी समिति’ का गठन करने पर विचार कर रही है, जिसे कुछ दवाओं को मूल्य नियंत्रण से मुक्त करने की शक्ति दी जा सकती है।
- गैर- ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं को मूल्य नियंत्रण से मुक्त किया जा सकता है, क्योंकि दवा निर्माताओं को अधिक से अधिक गैर-ब्रांडेड जेनेरिक दवाएँ बनाने के लिये प्रोत्साहन देना आवश्यक है।
- गैर-ब्रांडेड जेनेरिक दवाएँ ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं से तुलनात्मक रूप में सस्ती होती हैं। वर्तमान में भारत में बेची जाने वाली अधिकतर दवाएँ ब्रांडेड जेनेरिक दवाएँ हैं।
- जब ‘पैरासीटामोल’ को ‘कैल्पोल’ या ‘सूमो’ ब्रांड नाम के साथ बेचा जाता है, तो इसे ब्रांडेड जेनेरिक दवा कहा जाता है। लेकिन जब इसे ‘पैरासीटामोल’ के नाम के साथ ही बेचा जाता है, तो इसे गैर-ब्रांडेड जेनेरिक दवा कहा जाता है।
- भारत में ‘दुर्लभ बीमारी’ को परिभाषित नहीं किया गया है। हालाँकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे परिभाषित किया है, जिसके अनुसार प्रति 1000 जनसंख्या पर 1 या उससे भी कम के प्रसार वाली आजीवन बीमारी या विकार की स्थिति को ‘दुर्लभ बीमारी’ माना जाता है।
- कुछ आम दुर्लभ बीमारियाँ हीमोफीलिया, पोंपे रोग, थैलेसीमिया, सिकल-सेल एनीमिया, गौचर रोग हैं। एनपीटीआरडी 2017 के अनुसार, भारत में इस प्रकार की लगभग 450 दुर्लभ बीमारियाँ दर्ज़ की गई हैं।
जेनेरिक दवाएँ क्या हैं ?
- किसी बीमारी के इलाज के लिये तमाम तरह के अनुसंधान और खोज के बाद एक रसायन (सॉल्ट) तैयार किया जाता है, जिसे आसानी से उपलब्ध करवाने के लिये दवा की शक्ल दे दी जाती है।
- इस सॉल्ट को हर कंपनी अलग-अलग नामों से बेचती है, कोई इसे महँगे दामों में बेचती है तो कोई सस्ते दामों में।
- लेकिन इस सॉल्ट का जेनेरिक नाम सॉल्ट के रासायनिक गुणों और संबंधित बीमारी का ध्यान रखते हुए एक विशेष समिति द्वारा निर्धारित किया जाता है।
- उल्लेखनीय है कि किसी भी सॉल्ट का जेनेरिक नाम पूरी दुनिया में एक ही रहता है।
जेनेरिक दवाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने के लाभ
- दवा मूल्य का सस्ता होना- ये स्वाभाविक सी बात है कि यदि जेनेरिक दवाइयों का प्रचलन बढ़ता है तो इलाज के खर्च में दवाइयों के मूल्य का हिस्सा जो एक सबसे बड़ा हिस्सा होता है उसमें कमी आएगी। हालाँकि, सस्ती जेनेरिक दवाइयों की निर्बाध व गुणवत्तापूर्ण आपूर्ति के लिये और भी विभिन्न पहलें किये जाने की आवश्यकता है।
- सरकार को स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने में सहायता- सस्ती दवाइयों की उपलब्धता स्वास्थ्य सुरक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने में एक महत्त्वपूर्ण घटक है। इस प्रकार, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जैसी परियोजनाओं के लिये जेनेरिक दवा के रूप में सरकार को एक महत्त्वपूर्ण संसाधन प्राप्त हो जाएगा, जिससे आम जन को स्वास्थ्य सुरक्षा दी जा सकेगी।
- जेनेरिक दवा उद्योग- भारत का जेनेरिक दवा उद्योग विश्व में बड़े दवा उद्योगों में से एक है, तथापि जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा देना देश के एक बहुत बड़े उद्योग को बढ़ावा देगा। इससे इस क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा, जो अंततः नवाचार के साथ-साथ शोध एवं विकास (R&D) को प्रोत्साहित करेगा।
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना, 2019-20 तक जारी
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध (खंड-10 : सरकारी नीतियों और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन के कारण उत्पन्न विषय) (खंड-13 : स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय) |
चर्चा में क्यों?
देश में स्वास्थ्य सेवा संरचना के विस्तार को बड़े स्तर पर बढ़ावा देने के लिये प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना (Pradhan Mantri Swasthya Suraksha Yojana – PMSSY) को 12वीं पंचवर्षीय योजना से आगे 2019-20 तक जारी रखने की स्वीकृति दी है। इसके लिये 14,832 करोड़ रुपए का वित्तीय आवंटन है।
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना
- यह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की एक प्रमुख योजना है।
- पीएमएसएसवाई की घोषणा 2003 में की गई थी।
उद्देश्य
- देश के विभिन्न भागों में सस्ती और विश्वसनीय स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता की विसंगतियों को दूर करना।
- विशेष रूप से अविकसित राज्यों में गुणवत्तापूर्ण और बेहतर चिकित्सीय शिक्षा के लिये सुविधाओं का विस्तार करना।
- देश के विभिन्न भागों में तृतीयक स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं की उपलब्धता में असंतुलन को ठीक करना।
पीएमएसएसवाई के दो घटक हैं:
- एम्स (AIIMS) जैसे संस्थानों की स्थापना।
- राज्य सरकार के वर्तमान मेडिकल कॉलेजों का उन्नयन (Upgradation)
इसका प्रभाव क्या होगा?
- नए एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) की स्थापना से न केवल स्वास्थ्य, शिक्षा और प्रशिक्षण में बदलाव आएगा, बल्कि क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा के पेशेवर लोगों की कमी दूर होगी।
- नए एम्स का निर्माण पूरी तरह केंद्र सरकार के धन से किया जाएगा।
- नए एम्स का संचालन और रख-रखाव भी पूरी तरह केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
- उन्नयन कार्यक्रम में व्यापक रूप से सुपर स्पेशिऐलिटी ब्लॉकों/ट्रामा सेंटरों आदि के निर्माण के माध्यम से स्वास्थ्य अवसंरचना में सुधार करना और केंद्र तथा राज्य की हिस्सेदारी के आधार पर वर्तमान तथा नई सुविधाओं के लिये चिकित्सा उपकरणों की खरीद करना है।
रोज़गार सृजन
- विभिन्न राज्यों में नए एम्स की स्थापना से विभिन्न एम्स की फैकल्टी और गैर फैकल्टी पदों के लिये लगभग 3,000 लोगों को रोज़गार मिलेगा।
- एम्स के आस-पास शॉपिंग सेंटर, कैन्टीनों आदि की सुविधाओं और सेवाओं से अप्रत्यक्ष रूप से भी रोज़गार का सृजन होगा।
- चयनित सरकारी मेडिकल कॉलेजों में उन्नयन का कार्यक्रम केंद्र सरकार की सीधी देख-रेख में भारत सरकार द्वारा नियुक्त एजेंसियों द्वारा चलाया जाता है।
- संबंधित राज्य/केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों द्वारा इन मेडिकल कॉलेजों में नियमों के अनुसार स्नात्तकोत्तर सीटें और अतिरिक्त फैकल्टी पद सृजित किये जाएंगे और भरे जाएंगे।
- नए एम्स के लिये अवसंरचना सृजन में शामिल निर्माण गतिविधि तथा सरकारी मेडिकल कॉलेजों के उन्नयन में कार्य निर्माण के चरण में ठोस रोज़गार सृजन होने की भी आशा है।
स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस