UPSC DAILY CURRENT 10-05-2018
हाल ही में पंजाब सरकार ने डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के साथ मिलकर सिंधु नदी में पाई जाने वाली डॉल्फिन (Indus Dolphin) की गणना आरंभ की है। इस संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
- सिंधु डॉल्फिन केवल भारत में पाई जाती है।
- भारत में यह डॉल्फिन केवल ब्यास नदी में पाई जाती है।
उपरोक्त में से कौन-सा/से कथन सत्य है/हैं?
A) | केवल 1 |
B) | केवल 2 |
C) | 1 और 2 दोनों |
D) | न तो 1 और न ही 2 |
उत्तरः (b)
व्याख्याः
सिंधु डॉल्फिन (Indus Dolphin)
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ग्रीष्म लहर (हीट वेव) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
- यह असामान्य रूप से अधिकतम ताप की वह अवधि है जो भारत के उत्तर पश्चिमी भागों में ग्रीष्म ऋतु में होती है।
- ग्रीष्म लहर के लिये पहाड़ी क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तथा मैदानी क्षेत्रों में अधिकतम तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक होना चाहिये।
उपरोक्त में से कौन सा/से कथन सत्य है/हैं?
A) | केवल 1 |
B) | केवल 2 |
C) | 1 और 2 दोनों |
D) | न तो 1 और न ही 2 |
उत्तर (a)
व्याख्या:
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कैसल डॉक्ट्रिन (Castle doctrine) क्या है?
A) | यह अपराधी द्वारा मंशा के अतिरिक्त किये गए अन्य अपराध को दी गई संज्ञा है। |
B) | यह दो देशों के बीच एक प्रकार का शांति समझौता है। |
C) | यह अपने घर के बचाव में प्रयुक्त हिंसा के लिये प्रयुक्त विधिक शब्द है। |
D) | यह किसी गवर्नर जनरल द्वारा भारतीय शासकों पर आरोपित एक नियम है। |
उत्तर (c)
व्याख्या:
कैसल डॉक्ट्रिन अपने घर के बचाव में प्रयुक्त हिंसा के लिये प्रयुक्त विधिक शब्द है। सामान्य विधि परंपरा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अपने आवास अथवा कार्यस्थल जैसे स्थान जो उसकी निजी संपत्ति हो, वहाँ किसी अतिक्रमी के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करे तो उसे कानूनन दंडरक्षा (इम्युनिटी) प्राप्त होती है। ऐसे में हिंसा का प्रयोग करने वाले व्यक्ति को उपयुक्त साक्ष्यों के साथ अपने कार्य को न्यायसंगत सिद्ध करना होगा तथा यह बतलाना होगा कि उस स्थिति में अपने द्वारा बलप्रयोग एक उचित तथा तर्कसंगत प्रतिक्रिया थी। अपराधी द्वारा मंशा के अतिरिक्त किये गए अन्य अपराधों को एक्टस रियस (actus reus) कहा जाता है। |
“थोलू बोम्मलता” (Tholu Bommalata) के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन-से कथन सत्य हैं?
- यह तमिल नाडु की कठपुतली कला है, जिसमें छड़ तथा धागा कठपुतली-दोनों की तकनीक का प्रयोग किया जाता है।
- इसमें चमड़े के बनी कठपुतलियाँ प्रयुक्त होती हैं।
- इसके विषय रामायण, महाभारत तथा पुराणों से प्रेरित होते हैं।
कूट:
A) | केवल 1 और 2 |
B) | केवल 2 और 3 |
C) | केवल 1 और 3 |
D) | उपर्युक्त सभी। |
उत्तर (b)
व्याख्या:
थोलू बोम्मलता” (Tholu Bommalata)
नोट: ‘बोम्मलता’ तमिल नाडु की कठपुतली कला है, जिसमें छड़ तथा धागा कठपुतली दोनों की तकनीक का प्रयोग किया जाता है। |
स्वयं (SWAYAM) पोर्टल संबंधित है:
A) | शिक्षा से |
B) | स्वास्थ्य से |
C) | व्यापार से |
D) | कृषि से |
उत्तर: (a)
व्याख्या:
स्वयं (SWAYAM-Study Webs of Active Learning for Young Aspiring Minds) पोर्ट
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स्रोत: द हिंदू ,पी.आई.बी.
इंडो-बांग्ला भूमि व्यापार सीमाएँ अवैध कैसे?
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र- 2 : शासन व्यवस्था, संविधान, शासन प्रणाली, सामाजिक न्याय तथा अंतर्राष्ट्रीय संबंध (खंड-17 : भारत एवं इसके पड़ोसी-संबंध) |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, भारत से निर्यात किया गया माल ले जा रहे एक ट्रक में बांग्लादेश के बेनपोल भूमि बंदरगाह क्षेत्र में आग लग गई, जो पश्चिम बंगाल के पेट्रोपोल में भारतीय सीमावर्ती क्षेत्र के उस पार स्थित है। हालाँकि, यह घटना पश्चिम बंगाल के बोंगाँव में हुई थी।
बांग्लादेश और भारत के मध्य भूमि व्यापार संबंधी प्रमुख मुद्दे
कार-पास (Car-Pass) का दुरुपयोग
- ‘कार-पास’ चालक और सह-चालक को आव्रजन औपचारिकताओं के बिना बांग्लादेश में प्रवेश करने की अनुमति देता है। इस प्रकार के प्रवेश और निकास का रिकॉर्ड सीमा शुल्क प्राधिकरणों द्वारा अनुरक्षित किया जाता है।
- सीमा शुल्क प्राधिकरणों द्वारा जारी ‘कार-पास’ के आधार पर, किसी भी तरफ के ट्रक के माल को उतारने के लिये पार करने की अनुमति है।
- दोनों देशों के वित्त मंत्रालयों की सहमती के साथ इसके लिये किसी बीमा कवर का प्रावधान नहीं है।
- नियमों के मुताबिक, ट्रक को उसके चालक और उसके सह-चालक के साथ 24 घंटों के भीतर वापस आ जाना चाहिये, लेकिन भारतीय ट्रक को बांग्लादेश में तीन-चार दिन (यहाँ तक कि सप्ताह भर) के लिये हिरासत में ले लिया जाता है।
- इसका मतलब है कि ट्रक मालिक के पास बीमा होने के बावजूद, विदेशी भूमि में ज़रूरत से अधिक समय तक रुकने की वजह से बीमा कवर खो देता है।
- इसके अलावा क्षतिग्रस्त वाहन को आधिकारिक चैनल के माध्यम से वापस लाना भी मुश्किल है।
- यह कहना व्यर्थ नहीं होगा कि वहाँ रिश्वत की मांग अधिक है।
सुरक्षा से समझौता
- हालाँकि, ड्राइवरों को वाहनों का कई बार प्रवेश कराने पर बेनापोल में हिरासत में लिये जाना आम बात है।
- एक व्यापारिक एजेंट के मुताबिक, “सीमा पर बांग्लादेश की ओर से सुविधाओं और कानून हीनता के कारण, हमारे चालक रात को अपने ट्रकों को छोड़कर ठहरने के लिये भारत लौट जाते हैं”।
- व्यापार से जुड़े लोग दावा है कि भारतीय कार-पास बांग्लादेश में अच्छी कीमत पर बेचे और खरीदे जाते हैं, जो भारत की सुरक्षा दीवार को लांघकर भारत में प्रवेश करने का एक आसान विकल्प प्रदान करते हैं।
- हालाँकि, कार-पास एकमात्र मुद्दा नहीं है। दो साल पहले, एक भारतीय ट्रक के चालक पर पेट्रोपोल गोदाम में चोरी का आरोप लगाया गया था। जाँच के बाद पाया गया कि, वह दोनों देशों का ड्राइविंग लाइसेंस रखने वाला बांग्लादेशी था।
- यह कोई अपवाद नहीं है। हर दिन बांग्लादेश में प्रवेश करने वाले 450 वाहनों में से 350 को बोंगाँव क्षेत्र के ड्राइवरों द्वारा संचालित किया जाता है।
- इनमें लगभग 200 स्थानीय ट्रक बोंगाँव से बांग्लादेश में गोदामों से सामान ले जाते हैं। इन तथाकथित ‘स्थानीय’ ड्राइवरों में से कम से कम 200 बांग्लादेशी होते हैं।
सामाजिक-आर्थिक कारण
- हालाँकि, इसका सामाजिक-आर्थिक कारण भी है। बांग्लादेश में लंबे समय से हिरासत और ज़बरन वसूली बड़े पैमाने पर प्रचलित है, जबकि पश्चिम बंगाल में कमाई के लिये अपेक्षाकृत बेहतर अवसर मौजूद हैं।
- इस कारण स्थानीय चालक निर्यात व्यापार में भाग लेने के प्रति अनिच्छुक बने रहते हैं।
- इस अंतर को कम भुगतान वाले अवैध अप्रवासियों द्वारा भरा जाता है जिन्हें स्थानीय गिरोह द्वारा लाइसेंस और अन्य कागजात उपलब्ध कराए जाते हैं।
स्रोत: द हिंदू
बढ़ती तेल कीमतें कर सकती हैं भारत की समष्टि स्थिरता को प्रभावित
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र – 3 : प्रौद्योगिकी, आर्थिक विकास, जैव विविधता, पर्यावरण, सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन। (खंड-1 : भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय।) (खंड-9 : बुनियादी ढाँचा : ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे आदि।) |
चर्चा में क्यों ?
अप्रैल माह के प्रारंभ से ही कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतें $70 प्रति बैरल (ब्रेंट) से भी अधिक पर बनी हुई हैं। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें से वैश्विक अर्थव्यवस्था में व्यापक आधार पर सुधार, दिसंबर 2018 तक ओपेक देशों द्वारा कच्चे तेल के उत्पादन पर प्रतिबंधों का विस्तार, अमेरिका द्वारा ईरान पर प्रतिबंधों का अंदेशा, अन्य तेल उत्पादक देशों में भू-राजनीतिक तनाव जैसे कारण प्रमुख रूप से उत्तरदायी हैं।
प्रमुख बिंदु
- अमेरिकी शैल तेल अभी भी वैश्विक तेल भंडारण को बढ़ाने में अपेक्षित योगदान नहीं दे पाया है।
- आईएमएफ के अप्रैल 2018 के ‘वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलुक’ में भी कच्चे तेल की कीमतों में पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष औसतन 18 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना व्यक्त की गई है।
- विश्व बैंक के अप्रैल 2018 के ‘कमोडिटी मार्केट आउटलुक’ के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतों में इस वर्ष औसतन 22.6 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है।
- ब्रेंट कच्चे तेल की कीमतें तो अप्रैल के दूसरे सप्ताह में ही अपेक्षित औसत स्तर से ऊपर जा चुकी हैं।
- हाल में हुई तेल की कीमतों में वृद्धि जहाँ तेल निर्यातकों के लिये अनुकूल साबित हो रही है, वहीं भारत जैसे आयातक देशों के लिये यह परेशानी का सबब बन सकती है।
- यदि कच्चे तेल की कीमतें स्थायी आधार पर अधिक बनी रहती हैं, तो भारत के लिये समष्टि स्थिरता को बनाए रखना मुश्किल होगा।
- क्योंकि, कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि का भारत के मुद्रास्फीति, राजकोषीय घाटा, विनिमय दर आदि समष्टि स्तरीय बुनियादी तत्त्वों पर व्यापक असर होता है, अतः नीति निर्माताओं को इसके नकारात्मक असर को बेअसर करने हेतु कई मोर्चों पर सजग रहने की आवश्यकता है।
- वर्तमान में , भारत में मुद्रास्फीति में चार कारणों से वृद्धि हो सकती है । ये हैं : कृषि उत्पादों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्यों (एमएसपी) में संभावित वृद्धि, राज्य सरकारों द्वारा हाउस रेंट अलाउंस (एचआरए) में बढ़ोतरी का कार्यान्वयन, केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर 2018-19 के वित्तीय लक्ष्यों के पूरा न हो पाने की संभावना, कच्चे तेल के वैश्विक स्तर पर दामों में वृद्धि।
- पहले तीन कारण घरेलू परिस्थितियों के अनुसार नियंत्रित होते हैं, जो प्राधिकारियों को मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखने हेतु कुछ स्वतंत्रता प्रदान करते हैं।
- लेकिन, कच्चे तेल के दामों में उतार-चढ़ाव सरकार/आरबीआई के नियंत्रण से पूरी तरह से बाहर होते हैं।
- चावल और गेहूँ जैसी प्रमुख फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) लागत से लगभग डेढ़ गुना अधिक है। अतः इन फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि करने का कोई अनिवार्य कारण प्रतीत नहीं होता।
- आरबीआई के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा एचआरए में वृद्धि के मुद्रास्फीति पर पड़ने वाले प्रभाव को सांख्यिकीय आँकड़ों के आधार पर देखा जा सकता है। केंद्र के इस कदम द्वारा मुद्रास्फीति में 35 आधार अंकों (basis points) की मामूली वृद्धि हुई है, जिसके दिसंबर 2018 तक वापस नियंत्रण में आ जाने की उम्मीद व्यक्त की जा रही है। लेकिन, यदि सभी राज्य सरकारें 2018 में एचआरए में एक साथ वृद्धि कर देती हैं, तो यह प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से 100 आधार अंकों का होगा।
- कोर सीपीआई मुद्रास्फीति भारत में पहले से ही अधिक है। इनपुट लागत लगातार बढ़ रही है। साथ ही शीर्ष मुद्रास्फीति में तेज़ी से बढ़ोतरी हो सकती है और यह तेल कीमतों में वृद्धि के कारण अपेक्षित स्तर से ऊपर जा सकती है।
- सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में बाहरी चालू खाता घाटा (current account deficit) में 2017 -18 में 2 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। जबकि 2016-17 में यह बढ़ोतरी 1 प्रतिशत से भी कम थी।
- यदि 2018-19 में कच्चे तेल के दाम अधिक ही बने रहते हैं तो चालू खाता घाटा में और अधिक वृद्धि हो सकती है।
- रुपया पहले से ही दबाव में बना हुआ है और चालू खाता घाटा में वृद्धि की वजह से इसके 2018-19 में भी दबाव में बने रहने की संभावना है।
आगे की राह
- जब कच्चे तेल के दामों में तेज़ गिरावट हुई थी, तो सरकार ने इसका सारा लाभ उपभोक्ताओं को हस्तांतरित नहीं किया था और पेट्रोलियम उत्पादों पर कई कर या शुल्क आरोपित कर दिये थे। उस समय यह माना जा रहा था कि जब तेल के दामों में पुनः वृद्धि होगी, तो सरकार इन करों या शुल्कों को कम कर देगी।
- यदि $70 प्रति बैरल की कीमत पर सरकार के राजस्व लक्ष्यों की पूर्ति हो पा रही है, तो तेल कीमतों में इस स्तर से अधिक वृद्धि होने के दशा में सरकार को तेल पर आरोपित करों में कटौती करके कीमतों को स्थिर रखने का प्रयास करना चाहिये।
- पेट्रोलियम उत्पादों पर करों का निर्धारण इस तरह से किया जाना चाहिये कि उपभोक्ताओं के हितों को भी हानि न पहुँचे और सरकार के राजस्व लक्ष्यों पर भी नकारात्मक असर न पड़े।
- सरकार को इस संबंध में त्वरित कदम उठाने की आवश्यकता है, क्योंकि ज़्यादातर समष्टि स्तरीय आर्थिक मानक दाँव पर लगे हुए हैं।
- पेट्रोल/डीज़ल को जीएसटी के दायरे में लाना, पेट्रोल/डीज़ल पर करों का अधोगामी (downward) समायोजन जैसे कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। ऐसा न कर पाने की स्थिति में देश की समष्टि स्तरीय स्थिरता खतरे में पड़ सकती है।
स्रोत : द हिंदू